मैं जो यह सब देखता आया हूँ, कभी सुख का सागर; कभी दुख की बदरी झेलता आया हूँ... यूँ ही नही मिल जाता , इस जहाँ में सब कुछ.. कभी बेचैन रातें, कभी मेहनत के पत्थर तोडता आया हूँ... और भी तो साथ थे इस सफर में मेरे, किसी को दोस्त. किसी को दुश्मन समझ छोडता आया हूँ... क्या समझ पाओगे तुम मुझको, जब अपनों से ही मैं मुँह मोडता आया हूँ... मुमकिन है खुदा बन जाऊँगा कभी, हर गम में भी खुशी तौलता आया हूँ... | *** #प्रयास #मेरी_डायरी
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