वो देख कर मुस्कुराता भी नहीं, प्यार उसे है पर वो जताता ही नही। दूरियाँ यकीनन अच्छी है मगर, पास रहकर वो बुलाता भी नहीं। सितमगर है वो चाहने वाला , औरो की तरह मगर वो सताता भी नहीं । मिन्नतें रोज करती है उससे वो थक हारकर, रूठने पर मगर वो मनाता ही नहीं। दर ब दर टूट रहा वो कतरा कतरा, उलझने अपनी वो बताता भी नहीं। ज़ख्म नासूर बन गया है उसका अब, इलाज के लिए कहीं और दिखाता ही नहीं । औरा ही अलग है उसका, वो खुदा है, कुछ छिपाता ही नहीं ।
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