Lockdown की कविता
अफवाहों के गरम बाजारों में,
उलझ गया जो यूं मन मेरा,
अब जीने की भी राह न मिल रही
अब से कविता बंद।
अब से किया करेंगे पहलवानी,
रोज़ करेंगे हजार दण्ड,
अब तो लिखना छूट सा रहा,
अब से लिखना बंद ।
जिससे कभी मिला करती थी प्रेरणा,
मिलने का जिससे करते थे रोज़ जतन,
लिख कर भी अब क्या करेंगे,
जब उसका हो गया कल शगुन ।
अब तो लिखना छूट सा रहा,
अब से लिखना बंद ।
चढ़ हिमालय की चोटी पर,
वही से करेंगे सबको नमन,
भूख लगी तो खा लेंगे,
कभी फूल फल, कभी शकरकंद ।
अब तो लिखना बस का नहीं,
अब से कविता बंद ।
वहीं करेंगे घोर तपस्या,
मांगेगे वर ब्रह्मा जी से,
यदि वो हो गए हमसे प्रसन्न,
एक ही बार में ये चाहूंगा,
हर लो सब ये जादू टोना,
मुक्त करो अब इस धरा को,
जो की है कोरोना ।
बात लेकिन पते की है,
निर्मल होगी तभी धरा ,
जब मानव पर लगेंगे कुछ जरूरी प्रतिबंध,
तब से मैंने तय कर लिया,
अब न लिखूंगा ये कविता सविता,
अब से मेरा लिखना बंद ।
उलझ गया जो यूं मन मेरा,
अब जीने की भी राह न मिल रही
अब से कविता बंद।
अब से किया करेंगे पहलवानी,
रोज़ करेंगे हजार दण्ड,
अब तो लिखना छूट सा रहा,
अब से लिखना बंद ।
जिससे कभी मिला करती थी प्रेरणा,
मिलने का जिससे करते थे रोज़ जतन,
लिख कर भी अब क्या करेंगे,
जब उसका हो गया कल शगुन ।
अब तो लिखना छूट सा रहा,
अब से लिखना बंद ।
चढ़ हिमालय की चोटी पर,
वही से करेंगे सबको नमन,
भूख लगी तो खा लेंगे,
कभी फूल फल, कभी शकरकंद ।
अब तो लिखना बस का नहीं,
अब से कविता बंद ।
वहीं करेंगे घोर तपस्या,
मांगेगे वर ब्रह्मा जी से,
यदि वो हो गए हमसे प्रसन्न,
एक ही बार में ये चाहूंगा,
हर लो सब ये जादू टोना,
मुक्त करो अब इस धरा को,
जो की है कोरोना ।
बात लेकिन पते की है,
निर्मल होगी तभी धरा ,
जब मानव पर लगेंगे कुछ जरूरी प्रतिबंध,
तब से मैंने तय कर लिया,
अब न लिखूंगा ये कविता सविता,
अब से मेरा लिखना बंद ।
Hehehe .
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