असफलता
और खेलने लगे तुम्हारे जज्बात से,
संभालना पाव अपने तुम,
और बात करना अपने आप से..
गर मुमकिन हो ,
जाना छत के सबसे ऊपरी हिस्से पर,
कि जहां से जमीन दिखती हो,
और दिखता हो जहां सारा,
नापना छत से जमीन की दूरी...
और तकना आसमान को तुम ..
तुम पाओगी के आसमान में भी जंग चल रही होगी,
चांद और सूरज में फिर ठन रही होगी।
पर जीतने की होड़ में,
चांद निराश नहीं हुआ करते,
वो किया करते हैं इंतज़ार,
एकत्र करते हैं सारी शक्ति,
उस एक दिन के लिए,
जब हरा सके वो अंधियारे को ।
कि इक दिन ही काफी है,
सबक सिखाने के लिए, उजीयारे को।
खैर तुम फिर भी,
देखना पुराने गुजर चुके लम्हों को,
मुमकिन हो तो भूल भी जाना,
वक़्त के दिए सब जख्मों को,
के ज़ख्म अच्छे नहीं,
उनके लिए जिनकी मंजिलें अभी भी शेष हैं,
उनके लिए तो कदापि भी नहीं,
जिनके लक्ष्य बड़े और विशेष हैं ।
अतिउत्तम लगे रहिये पांडेय जी
ReplyDeleteSukriya 🙏♻️😊🎑
DeleteLajawab ...behtreen..wah wah.
ReplyDelete🙏
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