नींद या भूख
पहले नींद लगती है
या भूख,
जब नींद थक के सो जाती है,
तो एक व्यथा जगाती रहती है
तड़प जिससे पेट की क्षुधा मिट सके,
मिट सके कुछ क्षणों के लिए,
बेचैनी
आ सके जिससे प्यारी नींद।
नींद का सवाल ही यही है,
कमबख्त आती भी है
भूख मिटने के बाद,
सदियों के अनुभव के बाद भी
इंसान नहीं जान पाया,
पहले कौन आता है —
भूख, नींद,
या भूख मिटने की उम्मीद।
पेलेस्टाइन से यमन तक,
हुक्मरानों ने हमेशा दो टूक,,
शांति का रास्ता लिया है,
भूख की खातिर,
भूख जिससे बिलबिलाकर,
इक ख़्वातीन ने अभी अभी अपने
बच्चों को पत्थर चटा के लिए हमेशा के लिए,
सुपुर्द ए खाक किया है
नींद के लिए...
तथाकथित शांतिदूतों से
पूछे जाने चाहिए,
यह सवाल
एक बम के बदले,
दो परमाणु बम से शांति आती है क्या;
इतनी सी मौतों में,
इतनी सी तबाही में
कहाँ सो पाती है
किसी भूखे पेट की नींद?
इतनी सी तबाही में
कहाँ सो पाती है
किसी भूखे पेट की नींद?
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