शहर
शहर कभी अच्छे बुरे नहीं थें...
वे रहे सदा सतत्, अच्छाई बुराई से परे,
हमने उनको दिए नाम....
वे मूक बधिरों की भांति स्वीकारते रहे हमारे दिए गए शब्दों को..
वे बने रहे मूक दर्शक उनके सामने को हुआ अच्छा या बुरा....
और फिर यदि कभी अति हुई तो उन्होंने लाए बाढ़,तूफान , आंधियां..
या फिर इन सभी को रोकने के लिए उस कारक को खुद से अलग कर दिया....
उन्होंने नहीं देखे वे कारक सही हैं या गलत उन्होंने चुना तो बस शांति को ...
और फिर कुछ इस प्रकार वो कारक हमेशा उस शहर को याद करता रहा....
और फिर वही शहर उस कारक के आने पर ठीक वैसा ही स्वागत करता है जैसे सब कुछ ठीक था और फिर बरसा देता है चन्द बूंदें बारिश की....
और फिर वापस जाते समय एक टीस लेके जाता है ये जानते हुए भी कि उस शहर ने उसको माफ कर दिया है....
और फिर उस शहर में सब पहले जैसा ठीक प्रतीत होता है.....
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