सब्र
एक समय होगा जब तुम फूट के निकलोगे, तुमको कुछ नहीं रोक पायेगा..
ऐसे जैसे वृक्ष निकलता है सभी कठोर और दुर्लभ जमीन से धरती को चीरते हुए....
जैसे रोशनी निकलती है सूरज से और अविलंब ही अंधेरे को गायब कर देती है और रोशनी समेटती है अंधेरे को अपना मान के जैसे ये अंधेरा ही है जो उसको इस मुकाम तक लाया...
कितनी ही बाधाएं, कितना ही मन में गुप्प अंधेरा....
तुम्हारा डर सब ऐसे दूर भाग जायेंगे ऐसे जैसे पहले कभी कोई डर था ही नहीं....
ऐसे जैसे तुमने हमेशा सच्चे मन से सही करने का पूरा प्रयास किया बस गलत थीं तो तुम्हारी परिस्थितियां या फिर कुछ और...
जब तुमको कोई कुछ नहीं बोल पायेगा या फिर जब सब तुमको सब छोड़ देंगे अकेला....
फिर तुम्हें पता चलेगा वो आनन्द जो सिर्फ और सिर्फ छोड़े जाने के बाद आता है.....
तुम थोड़ा इन्तजार करो बस...
तुम खिलोगे अपने तरीके से ...
वो खिलने के बाद की उदारता,वो भीनी सी मुस्कुराहट इस बात का प्रमाण होंगे तुमने कितना किया....
इन सब के बाद...
फिर वो शांति होगी जिसके बाद कभी फिर वैसा तूफान नहीं आयेगा.....
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