फूल
तुम मेरे लिए फूल मत तोड़ना कभी भी...
अगर तुम मुझे प्रेम करते हो तो तुम्हें पता होना चाहिए...
मुझे कितना भी आकर्षण हुआ हो फूलों से पर मुझे उन्हें तोड़ने की हिम्मत ही नहीं हुई.....
यहां तक कि ईश्वर को अर्पण करने के लिए भी नहीं...
ये जानते हुए भी कि बनाया तो सब कुछ ईश्वर ने ही है और सब उनका ही है....
पर फिर भी जिन्होंने प्रेम किया उन्होंने कभी फूलों को तोड़ा नहीं ....
बयाज इसके उन्होंने बोए बीज.....
और इतंजार किया बीज का वृक्ष, कली का फूल और फूलों का पुनः बीज में परिवर्तन का...
उन्होंने देखा और इंजतार किया प्रेम के निखरने का या फिर एक रूप या आकार में परिवर्तित होते हुए...
तुम्हें पता होना चाहिए मुझे नहीं चाहिए फूल...
चाहिए तो बस तुम्हारा साथ
जो समय के सापेक्ष परिवर्तित तो हो पर मेरे लिए रहे
अविरल, अभेद्य,मुतमइन, पुरसुकून....
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