शायद ऐसा ही है

 तुम भागते रहो चीजों से कितनी भी दूर, मीलों, कोसों या फिर खरबों प्रकाश वर्ष दूर,

या फिर ऐसे जैसे तुम भूल गए हो शरीर या मन के थकने जैसा भी कुछ होता है,

और लगातार बस भागते ही जा रहे,

पर जो भी चीजें जितने समय के लिए भी तुम्हारी होनी हैं वो चुंबक की भांति तुम्हारी तरफ अपने आप खींची चली आएंगी बिना किसी प्रभाव के,

  प्रायः उस समय विशेष के लिए,

और समय समाप्त होने के बाद ,

वे प्रायः इतनी शीघ्रता में होती हैं कि अपना प्रभाव इधर ही छोड़ जाती हैं चाहे वो अच्छी या फिर बुरी हों,

परंतु बुरी चीजों के प्रभाव का अंतराल लंबा होता है या फिर हमने बना दिया होता है...

तो इसके लिए अच्छा ये होता है कि आप ज्यादा खींचातानी न करें अन्यथा उनका प्रभाव दिन ब दिन बढ़ता चला जाएगा ऐसे जैसे हम कोई गांठ खोल रहे हों और ध्यान न देने पर वो उतना ही उलझता चला जाता है,

और ऐसे शांत रहने पर जब वो प्रभाव खुद को प्रबल नहीं कर पाता ,

तो वो हमेशा के लिए या फिर कुछ एक लंबे अंतराल के लिए विलुप्त हो जाता है,

शायद ऐसा ही है,

या फिर पता नहीं...




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