वो जो गीत न बन पाए...

पतझड़ भी बीत गई, बहार भी न आए
सर्द है जो मौसम, करार भी न आए !
बनना था जिन्हें मीत मेरा,
मेरी कविता का वो, गीत भी न बन पाए।



सहमा है सब कुछ, 
रूह से न सही, इश्क का व्यापार अच्छा है।

ये तो उसका रहमोकरम है,
जब जी चाहा याद किया, जब जी चाहा भूल गए !

कल से और शाम हसीं होगी,
कल से वो जुदा होंगे धीरे धीरे।

यूं ही चलो, किसी सफर में चला जाए 
बेवजह मंजिल को क्यों, याद किया जाए।




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