ईद
ईद की इफ्तारी मिल गई
यार को बेगारी मिल गई
कुछ सिक्के गिरे थे उसके दामन में
हमको उधारी मिल गई।
तरन्नुम में चले चलो अब तकदीर के साथ,
दिल की खामोशी को आवाज़ मिल गई रात।
जो सोचा था कभी, वो सूरत न बन सकी,
ख्वाबों की गलियों में बस ख़्वाहिशें धुंधली मिल गई।
बस यूँ ही चलते रहे अपनी ही राहों में,
उजालों में अंधेरों की यारी मिल गई।
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