Skip to main content

परिवर्तन


‘‘आओ हम सब मिलकर भारत को एक नयी दिशा दें। आरम्भ का समय यही, फिर भारत को जगतगुरु बना दें।।’’

परिवर्तन के इस दौर में अब आरम्भ का समय गया है। आखिर कब तक हम चुप बैठेगें? कब हम उठेगें अपने अधिकारों के लियेकब हम खड़ें होगें विकसित देशों के साथ? हाँ यही समय है जब हम एक सफल और बेहतर भविष्य के निर्माण की शुरुआत कर सकते है। हमें आगे बढ़ना होगा, दुनिया के एक सशक्त राष्ट्र के रुप में अपनी एक पहचान देना होगा। मानव-मानव के बीच बढ़ रही खाइयों को पाटते हुए घृणा, लालच, इष्र्या, द्वेष, वर्चस्व, सत्ता,अहं आतंक को मिटाना होगा। हमें आत्म निर्भर बनकर विश्व क्षितिज पर एक बार पुनः जगत गुरु बनकर जगमगाना होगा। यह तभी सम्भव हो सकता है जब हम सब मिलकर ईमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्य का निर्वहन करें। विद्यार्थी विद्या अध्ययन करे और अध्यापक ईमानदारीपूर्वक अध्यापन करें। नेता ईमानदारीपूर्वक देश की सेवा करें और प्रशासनिक अधिकारी ईमानदारीपूर्वक जनता का काम करें। न्यायाधीश न्याय और वकील ईमानदारीपूर्वक वकालत करें। डाक्टर कर्तव्यनिष्ठ भाव से मरीजों की देखभाल करें। हर व्यक्ति अपना काम कर्तव्यनिष्ठा ईमानदारीपूर्वक निष्ठाभाव से निभायें। हम सब मिलकर ऐसी ही एक शुरुवात करें जिससे भारत एक बार पुनः जगत गुरु की संज्ञा प्राप्त करें। हमें अपने अतीत से सीख लेते हुए वर्तमान पर बल देने की आवश्यकता है, जिससे एक बेहतर भविष्य का निर्माण हो सकें। जब हम अपने अतीत की ओर देखते है तो हमारा अतीत उत्कृष्ठता, सफलता और वैभव के गौरवमयी शिखर से अंधकार के गर्त में डूबता नजर आ रहा है। इतिहास गवाह है कि भारत कभी धनधान्य से परिपूर्ण था। यहाँ दूध दही की नदियाँ बहा करती थी। विश्व इसे जगत गुरु की संज्ञा देता था। यह ज्ञान के आलोक से प्रकाशित था। इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था किन्तु आज हम विश्व के कर्जदार हो चुके है आखिर इतना बड़ा परिवर्तन कैसे? भारत के विह्वल हृदय को समय-समय पर विदेशी आक्रमणकारियों ने छलनी किया है। महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी, मुगल, पुर्तगाली, हूण, शक, फ्रांसीसी अंगे्रजों ने भारत के अथाह सम्पत्ति को लूटा और अत्याचार किया। इतनी लूट-खसोट के बाद भी आज भी भारत की यह धरती प्राकृतिक संसाधनों से भरी पड़ी है। जरुरत है तो सिर्फ सही दिशा में एक शुरुवात की।







गुजर गया वह दौर जब सैन्य शक्ति के बल पर किसी देश को पराजित किया जाता था। अब बदलते समय के साथ राजनीतिक आयाम भी बदल चुके है। अब किसी देश को कमजोर करने के लिये कूटनीतिक तरीकों से आर्थिक रुप से कमजोर करने का समयआ गया है। ऊर्जा संसाधनों पर सेंध लगाकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना विश्व की प्रमुख विदेश नीति बन चुकी है। जिसके लिये तरह-तरह के रास्ते अपनाये जा रहे है। 21वीं सदी का द्वितीय दशक भारतीय राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक सांस्कृतिक क्षेत्र में बदलाव की ओर इंगित कर रहा है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश द्वारा भारत में एक नया परिवर्तन लाने की सम्भावना है। स्मार्ट सिटी परियोजना एक परिवर्तन की ओर इशारा करती है। वर्तमान में भारत में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति मिल चुकी है लेकिन क्या हम भूल गये ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन, ईस्ट इंडिया कम्पनी भी भारत में व्यापार के उद्देश्य से आयी थी किन्तु उसने भारत में क्या किया, इतिहास इससे भलीभांति परिचित है। एफ0डी0आई0 को आमंत्रित करना एक जोखिम प्रतीत होता है। कुछ लोगों का कहना है कि एफ0डी0आई0 हमें रोजगार के अवसर उपलब्ध करायेगी लेकिन वास्तविकता यह है कि रोजगार उपलब्ध होने से ज्यादा रोजगार छीनने की सम्भावना है। एफ0डी0आई0 के आने से सभी छोटे उद्योग धंधे बंद हो जायेगे। एफ0डी0आई0 भारत में निवेश करके मुनाफा तो कमायेगी लेकिन अगले तीन साल तक भारत सरकार को कर अदा नहीं करेगी। दूसरी तरफ स्मार्ट सिटी परियोजना का क्रियान्वयन ऐसा लगता है कि यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों धनिक वर्ग के स्मार्ट व्यक्तियों, वर्गो को बढ़ावा देने की एक परियोजना है। प्रश्न उठता है कि भारत जैसा देश जहाँ दुनिया के कुल भूखों का 1/4 भाग भारत में निवास करता है और दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारतीय हो। ऐसी स्थिति में हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिए। स्मार्ट सिटी की कुल लागत 82 लाख 80 हजार करोड़ रुपये है। इतनी भारी रकम की अदायगी ऋण के लिये हमें विश्व बैंक के सामने झुकना होगा। पहले से ही भारी कर्ज में डूबा यह देश एक बार फिर से विश्व के आकाओं के सामने घुटने टेक रहा है। वह भी ऐसी चीज के लिये जो हमारी प्राथमिकताओं में सम्मिलित नहीं है। अच्छे-अच्छे सपने दिखाकर, कर्ज देकर विश्व ने ग्रीस स्पेन जैसे देशों का क्या हश्र किया यह किसी से छुपा नहीं है। देशों को कर्ज के बोझ तले दबाकर आर्थिक गुलाम बनाना और दिवालिया घोषित करना विश्व राजनीति की गहरी साजिश है। आज हमें आवश्यकता है आत्मनिर्भर बनने की, स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल देने की आवश्यकता है।

पतंजली के उत्पादों में आज भारतीय बाजारों में धमाल मचा दिये है। हमें इसकों आगे ले जाने की आवश्यकता है। इससे स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन की एक जमीन तैयार करने की ओर हम अग्रसर हुए है और हमको इसी जमीन से एक उत्कृष्ट भारत की निर्माण की शुरुवात करनी है।  21वीं सदी का आधुनिक एवं सभ्य विश्व एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा का सामना करने के लिये विवश है जो इस्लाम धर्म के नाम पर हर तरह का खून-खराबा करने को आतुर है। पृथ्वी पर बसे मानव समुदाय को आतंकवाद के काले बादलों ने घेर लिया है। ईष्र्या, द्वेष, घृणा, तृष्णा, वर्चस्वसत्ता, अहम् आतंकवाद की आग में जल रहा है। यह विश्व दिन-प्रतिदिन आतंकवाद का शिकार होता जा रहा है। विश्व पटल पर मंडरा रहे घृणा नफरत के बादलों ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि हमें आतंकवाद को खतम करना ही होगा वरना यह समूची मानव जाति को खतम कर देगा। सभ्यताओं को नष्ट कर देगा। नफरत के यह काले बादल कब किस पर बरस पड़ें, कहा नहीं जा सकता। हमारा यह प्रयास हो कि हम मासूमों, माताओं, बहनों  बेगुनहगारों को आतंकवाद के घिरते साये से बचा सकें। इसके लिये हमें आतंकवाद से सख्ती से निपटने की जरुरत है। कहीं सीरिया में बमबारी हो रही है तो कही फ्रांस में लाशों का ढेर लग जाता है। उस समय फिर विश्व में एक बार इंसानियत शर्मसार हो गयी जब ढाका का गुलशन कैफे खून के फव्वारों और लाशों से पट गया, तो यह है हमारा वर्तमान। हमारा अतीत भी खून के फव्वारों से सना नजर आता है।

प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्धअमेरिका-इराक युद्ध, ईराक-ईरान युद्धईराक-कुवैत युद्ध, अरब-इजराइल संघर्ष, खूनी संघर्षो की कहानियाँ बयां कर रहे है। भारत में अशोक की कलिंग विजय, तराइन का युद्ध, भारत में बिट्रिश राज्य जैसी घटना बर्बरता और क्रूरता की कहानियाँ बता रही है। अतीत से लेकर वर्तमान तक हिंसा की कहानियों से भरा पड़ा है। परिवर्तन यह हुआ है कि राजतांत्रिक हिंसा की जगह अब आतंकवाद ने ले लिया है।जिसका चेहरा बेहद डरावना, बेरहम क्रूर है। 21वीसदी का आधुनिक सभ्य विश्व प्ैप्ै का सामना करने
के लिए विवश है। जूनूनी, जाहिलियत भरा बेदर्दबेरहम प्ैप्ै अपने आतंकी कारनामों से विश्व को चुनौती
दे रहा है। प्ैप्ै प्रवक्ता अबु-अल-अदनानी ने अपने संगठन के सदस्यों से अपील की है कि वे जहाँ मौका
मिले जो हथियार मिलें, खुद मुख्तारी से दुश्मनों पर हमला करे, अगर कारतूस नहीं मिलता, बम नही मिलता तो उनके सिर पत्थरों से फोड़ दो या छूरा घोंप दो, नहीं तो कार चढ़ा दो, या उनको ऊँची जगह से ढकेल दो, गला घोंट दो हो सके तो जहर ही देदो। नफरत का जहर उगल रहा यह शैतान यही नहीं रुका आगे कहा कि इतना भी हो सके तो उनके कारोबार में आग लगा दो, और उनके चेहरे पर थूक दो। अब आतंक का बदलता यह रुप अपने समूचें विश्व के लिए चुनौती बन गया है। इस्लाम को ढाल बनाकर आतंक का नग्न नृत्य कर रहा प्ैप्ै इस्लाम परस्त होने का दावा पेश कर रहा है। इस्लाम जोर जबरदस्ती और आतंक के साये में किए गए धर्मान्तरण
को कतई स्वीकार नहीं करता। इस्लाम मासूमों का खून बहाने की इजाजत नहीं देता है। इस्लाम शांति
का सन्देश देता है। सूफी इस्लाम इसका प्रमाण है। यही कारण है कि विश्व के तमाम इस्लामी धर्म गुरुओ ने प्ैप्ै को नकार दिया है। प्ैप्ै का उदय क्रूरतम  दर्दनाक तानाशाही युग की ओर इशारा करता है। यदि इसको कुचलने के लिए सख्त कदम नहीं  उठाये गये, तो यह जल्द ही विश्व को अपनी गिरफ्त में ले लेगा, और फिर इसको काबू करना काफी मुश्किल होगा। इसलिए हमें अभी आगे आना होगाऔर आतंकवाद से सख्ती से निपटना होगा।


आज के इस बदलते समय में, बदलतें राजनीतिक समीकरणों ने ऊर्जा की आवश्यकता को एक नयी चुनौती के रुप में पेश किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से राजनीतिक समीकरण बदल चुके है। द्वितीय विश्व युद्ध में जब विश्व ने अमेरिका की परमाणु ऊर्जा का प्रयोग आइन्स्टीन के ऊर्जा के समीकरणऊर्जा = द्रव्यमान प्रकाश की चाल2 का आकलन किया तो विश्व में ऊर्जा भण्डारण की होड़ मच गयी। ऊर्जा भण्डारण की इस होड़ में एक देश दूसरे देश को पीछे छोड़कर आगे निकल जाना चाहता है। ऊर्जा हमारी प्रमुख आवश्यकता है, चाहे कृत्रिम उपग्रह होंचाहे चाँद पर आशियाना बनाना हो, चाहे पटरियों पर लौह पथगामिनी दौड़ानी हो, वायु को चीरता हुए वायुयान, विद्युत हो या सड़क परिवहन हो सभी क्षेत्रों में बड़ें पैमाने पर हो रहा ऊर्जा दोहन ने विश्व के समक्ष ऊर्जा संकट खड़ा कर दिया है। पृथ्वी पर जीवाश्म ईधन के भण्डार सीमित है। जो 21वीं सदी के अंत तक खत्म हो चुके होगें। प्रश्न उठता है कि आगे आने वाली पीढ़ियों के ऊर्जा स्रोत क्या होगें? 21वीं सदी के अंत तक विश्व ऊर्जा के नये वैकल्पिक स्रोतों की ओर देखेगा। सौर ऊर्जा पवन ऊर्जा नयी पीढ़ी के लिए बेहतरीन विकल्प हो सकते है। आज कल व्यक्तिगत वाहनों की संख्या मे वृद्धि हो रही हैजिससे सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कम हुआ है। इससे यातायात बाधा की समस्या उत्पन्न हो रही है और ऊर्जा का बड़ें पैमाने पर दोहन भी। हम व्यक्तिगत वाहनों की अपेक्षा सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करके ऊर्जा बचत में अपना योगदान दे सकते है। जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी होगी। दिल्ली लखनऊ जैसे शहरों में मेट्रो का आगमन एक सराहनीय कदम है, इसे हमें अन्य शहरों में भी आरम्भ करने की आवश्यकता है। विश्व में जीवाश्म ईधन के लगातार दोहन ने कार्बन उत्सर्जित करके ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को जन्म दिया है। जिससे ओजोन परत क्षय हो रहा है, जिससे विश्व पर्यावरण संकट में पड़ गया है। एक तरफ विश्व में जीवाश्म ईधन (कोयला, तेल, पेट्रोल) के खतम हो रहे भण्डार दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिग की समस्या ने विश्व को ऊर्जा के नये वैकल्पिक स्रोतों की ओर देखने के लिए विवश कर दिया है। आज किसी देश की ताकत का अन्दाजा उस देश के ऊर्जा क्षमता से लगाया जा सकता है। देशों की ऊर्जा आवश्यकता व ऊर्जा की आपूर्ति ही उस देश की विदेश नीति तय कर रही है। दक्षिण चीन सागर हिन्द महासागर में ऊर्जा के विशाल भण्डार होने के कारण ही विश्व की नजरे इन महासागरों पर गड़ी हुयी है। चीन दक्षिण चीन सागर पर अपनी दावेदारी पेश करने के साथ हिन्द महासागर पर भी अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। भारतीयों नौसैनिकों के अनुसार कई चीन की पनडुब्बियाँ हिन्द महासागर में देखी गयी है। कई बार तो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के काफी पास
चीन की पनडुब्बियाँ दिखी। दक्षिण चीन सागर पर तो चीन ने अपने एकाधिकार का दावा किया है। जब कि वियतनाम और फिलीपीन्स ने भी इसके कुछ भाग पर अपना दावा किया है। हेग की अदालत ने चीन के दावे को खारिज कर दिया था, परन्तु चीन मनमानी करने पर अड़ा हुआ है। विश्व के मुखिया यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका की नजरे भी हिन्द महासागर पर लगी है। हिन्द महासागर के केरल तट रामसेतु के पास थोरियम के विशाल भण्डार जिनसे अगले 500 वर्षो तक भारत में विद्युत उत्पादन किया जा सकता है। यही कारण था कि अमेरिका ने भारत से रामसेतु को तोड़वाकर जलमार्ग बनवाकर रामसेतु का कचरा अमेरिका को सस्ते दामों पर बेचे जाने का आग्रह किया था, परन्तु यह सम्भव नहीं हो सका। 

अभी हाल में, एन0डी00 सरकार के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच सहमति बनी है कि दोनो देश एक दूसरे के सैन्य अड्डों सामानों का उपयोग जहाजों की मरम्मत के लिए कर सकेगें। यह निर्णय चीन का हिन्द महासागर में हस्तक्षेप को देखते हुए किया गया। 21वीं सदी का प्रथम दशक तेल कोल ऊर्जा का रहा, जब अमेरिका इराक आपस में टकरा गये, कि कही फारस की खाड़ी से होकर जाने वाला तेल का रास्ता अमेािका के लिए बन्द हो जाए। विश्व में दादागीरी कर रहा अमेरिका ऊर्जा के समस्त भण्डार हथियाने के फिराक में है, तो हमें भी एक शुरुआत करनी होगी, कही हम ऊर्जा के क्षेत्र में पीछे  रह जाए और विकसित देश हमें कुचलकर आगे निकल जाए। विश्व में लगातार खतम हो रहे जीवाश्म ईधन (कोयला, तेल, पेट्रोल आदि) के भण्डार इनसे हो रही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या विश्व को नयें ऊर्जा स्रोतों की ओर देखने के लिये विवश करता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा चुम्बकीय ऊर्जा भविष्य की वैकल्पिक स्रोतों के रुप में सामने आये है। जिसमें से चुम्बकीय ऊर्जा पर वैज्ञानिकों का शोध कार्य चल रहा है।

सौर ऊर्जा भारत के लिए सुलभ एवं सस्ता विकल्प है। भारत को प्रकृति का वरदान प्राप्त है। यहाँ साल के 300 दिन सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है। जो हमें 4-6 किलोवाट/घंटा, प्रति वर्ग किलोमीटर की सतह पर सौर विकिरण देता है। जो समय और स्थान के हिसाब से कहीं-कहीं अलग होता है। देश में लगभग कुल सौर ऊर्जा क्षमता 748.98 गीगावाट के बराबर है|  भारत में राष्ट्रीय सौर मिशन-2010 का आगमन सौर ऊर्जा के क्षेत्र महत्वपूर्ण कदम है। हमारे पास सौर ऊर्जा का सस्ता सुलभ विकल्प मौजूद है। जिसके द्वारा हम सौर ऊर्जा उपयोग की शुरुवात करते हुए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते है। भारत इस समय 75 प्रतिशत कोयले का आयात करता है, सौर  ऊर्जा का उपयोग, हमारी कोयले पर निर्भरता को कम कर देगा। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हुयी भारत की वृद्धिभविष्य की ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए जमीन तैयार करती है। सौर ऊर्जा ऐसा विकल्प हैजिससे भविष्य के ऊर्जा संकट पर लगाम लगाया जा सकता है। भारत प्राकृतिक रुप से धनी है, भारत में प्राकृतिक संसाधन पर्याप्त रुप में उपलब्ध है। बस जरुरत है, तो एक सही दिशा में उनका उपयोग करने की। भारत के लिए विद्युत उत्पादन में परमाणु ऊर्जा भी एक महत्वपूर्ण विकल्प हैं। भारत के हिन्द महासागर में केरल तट रामसेतु के पास थोरियम के विशाल भण्डार उपलब्ध है। जिनको यूरेनियम में बदलकर विद्युत उत्पादन किया जा सकता है। कुछ लोगों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा विध्वंशक है,परमाणु संयत्रों के आस-पास रहने वालों के जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पडेगा। लेकिन जितना एक मनुष्य एक बार के सी0टी0 स्कैन या एक्स-रे में विकिरण झेलता है, उतना विकिरण परमाणु संयंत्रों के आस-पास रहने वाला व्यक्ति जीवन भर में नहीें झेलता। परमाणु संयत्रों के आस-पास की खाद्य पदार्थो की जाँच करा के उनकी सुरक्षा की जा सकती है। 2014-15 के पहले परमाणु ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन केवल 2 फीसदी था। परन्तु 2014-15 में यह बढ़कर 3.25 फीसदी हो गया। जो परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक अच्छी शुरुआत है। भारत के द्वारा सी0एफ0एल0 प्रकाश व्यवस्था को बदलकर एल00डी0 प्रकाश व्यवस्था की शुरुआतऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र मे एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में भारी बचत की सम्भावना है। सरकार द्वारा चलाई जा रही सौर ऊर्जा की मुहिम भी एक भारी बदलाव की ओर संकेत कर रही है। सदियों से अन्धकारमय गाँवों मंे सौर ऊर्जा ने प्रकाश भर दिया है। जरुरत है, हमें ऐसी मुहिम को आगे बढ़ाने की, जिससे पूरा भारत प्रकाशमय हो सकें। यही वह जमीन है, जो पिछले कुछ वर्षो से तैयार हुयी है, अब आरम्भ का समय गया हैहम सब को मिलकर आगे बढ़ना होगा। 

आज के इस बदलते दौर में महिलाओं की सामूहिक चेतना में काफी परिवर्तन हुआ है। अब महिलाएँ सिर्फ घर के चूल्हा-चैका तक ही सीमित नहीं रहना चाहती। महिलाओं ने अपने अधिकारों को पहचाना है और वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना चाहती है। महिलाओं ने मन्दिरों  दरगाहों में प्रवेश के लिए लड़ाईयाँ लडी है।बाम्बे हाईकोर्टने महिलाओं के दरगाह हाजी अली शाह मुम्बई में प्रवेश को हरी झंड़ी दे दी है। आगे मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया है। मुस्लिम महिलाओं ने तिहरे तलाक पर भी गहरा रोष व्यक्त किया है। निश्चित रुप से महिलाओं को खुली हवा में जीने का अधिकार प्राप्त है। महिलाएं कोई घरेलू इस्तेमाल की वस्तु नहीं, जब मन में आया इस्तेमाल करे जब मन में आया बाहर कर दें। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हम सबकों मिलकर सहयोग करना होगा। क्योकि यही वह समय है, जब हम सब मिलकर एक सुखी, समृद्ध उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते है।

दलित उत्पीड़न भारत में कोई नया नाम नहीं है। सदियों से दलितों का उत्पीड़न होता आया है। समाज के गंदें घृणित काम जैसे मल उठाना जानवरों के शव उठाना, जैसे काम दलितों के द्वारा ही किए जाते है। हमारा यह वर्तमान समय दलित जागरण की ओर संकेत कर रहा है। गुजरात की ऊना की घटना ने दलितों को एक मंच पर ला खड़ा किया है। देश कादलित अब जाग गया है। दलितों ने भी अपने अधिकारों की लड़ाई छेड़ दी है। दलित जागरण ने सत्ता में हलचल मचा दिया। दलितों ने आन्दोलन शुरु करके सरकार से जमीन की माँग की। हमें आज इस बदलते दौर में सबकों साथ लेकर चलने की आवश्यकता है। हमें ऐसी तकनीकों को क्रियान्वयन में लाना होगा, जिससे दलितों को मल उठाना जानवरों के शव उठाने जैसे गंदें घृणित कार्यो से बचाया जा सकें। जरुरत है हमें ऐसी मशीनों को उन्नत करने की जिससे इन कार्यो को सुचारु रुप से संचालित किया जा सके और दलितों को सदियों पुरानी मैला ढोने की परम्परा से मुक्ति मिल सकें। देश का युवा ही देश का भविष्य होता है। भारत युवाओं का देश है। युवा वह है, जो देश का भविष्य बदल दें। युवाओं में वो हौसला, वो जूनून, वो हिम्मत और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है। द्वितीय विश्व युद्ध में ध्वस्त हो चुका जापान जब विश्व की तकनीक को चुनौती दे सकता है, तो फिर हम क्यू नहीं? जरुरत हैं, हमें एक शुरुआत की, जी हाँ आरम्भ का क्षण है यही, और जमीन यही। 2070-80 तक जब जीवाश्म ईधन खत्म होने के कगार पर होगा, तो दुनिया ऊर्जा के नये वैकल्पिक स्रोतों की ओर रुख करेगी। सम्भावना है कि आने वाला दौर चुम्बकीय ऊर्जा का दौर होगा। 




विश्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने अपनी सफलता के झण्डे गाड़ें है। ज्ञान का अथाह सागर है विज्ञान, विज्ञान का अंत नहीं, जहाँ 20वीं सदी में हमें वायुयान, चन्द्रमा की सैर इन्टरनेट दिया। वही 21वीं सदी एक नई वैज्ञानिक उपलब्धि की ओर संकेत कर रही है। 21वीं सदी के अंत तक जब पृथ्वी पर उपलब्ध ऊर्जा के समस्त भण्डार पूरी तरह खंगाले उपयोग किए जा चुके होंगे। तब विश्व ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर देखेगा। आज वैज्ञानिकों का सुपर कन्डक्टर्स की ऐसी श्रेणी का पता लगाना, जिन्हें 0 к ताप तक ठंडा करने के लिए द्रवित हाइड्रोजन का उपयोग करना पड़ें। ऐसा अगर सम्भव होता है, तो भविष्य की ऊर्जा चुम्बकीय ऊर्जा होगी। वह दिन दूर नहीं जब लौहपथगामिनी चुम्बकीय तरंगों के माध्यम से हवा में तैरती नजर आयेगी। हमारी कारें और हम सब चुम्बकीय तरंगों के माध्यम से हवा में तैर रहे होगें। चीन, जापान और जर्मनी इस तकनीक में आगे चल रहे है। यहाँ पर मैग्लेव ट्रेने मीलों की दूरी तय करते हुए चुम्बकीय तरंगों के माध्यम से तैरती नजर आती है। पर समस्या यह होती है, कि सुपर कण्डक्टर्स को निम्न  ताप पर ठंडा करने के लिए द्रवित हाइड्रोजन की आवश्यकता होती है। जो कि बहुत मंहगे और विस्फोटक होते है। 



भारत जैसे देश के लिए चुम्बकीय ऊर्जा की खोज एक और चुनौती होगी। भारत के पास एक तरफ गरीबी उन्मूलन की चुनौती तो दूसरी ओर नयी तकनीक के माध्यम से विश्व को चुनौती देने की चुनौती है। सवाल उठता है कि क्या हम जातिवादधर्मवाद, भाषावाद क्षेत्रवाद की ऊर्जा से विश्व की चुम्बकीय ऊर्जा का सामना करेगें? तो हमें अभी से तैयार होना होगा, एक सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए, एक सुनहरे कल के लिए। एक ऐसी शुरुआत करनी है, जो लोगों की कुण्ठित कुत्सित सोंच बदल सके और अन्धकारमय होता जा रहा हमारा भविष्य एक बार फिर से सोने की चिड़िया बनकर चमक उठें। हमें राजनीतिक, सामाजिक धार्मिक क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ अपने सांस्कृतिक नैतिक मूल्यांे की रक्षा करते हुए एक ऐसी शुरुआत की आवश्यकता है, जिसमें नया जोश होनयी उमंग, नये हौसले और नये इरादें, जिससे हम सब मिलकर एक बार फिर भारत को जगत गुरु बना दें।

‘‘नया जोश, नयी सोंच, नये हौसलों और विश्वास की।भारत को जरुरत है, आज एक नयी  शुरुआत की।।’’






Comments

Popular posts from this blog

हमसफर

आप तलाशते रहिए  सच्चे हमसफर जिंदगी भर, झोंकते रहिए खुद को  अंतहीन वेदनाओं से रोजाना, और अंत में जब  किसी के सारे कष्ट अपने लगने लगे, तब  समझो तुम्हारी तलाश पूरी हुई । आप चलते रहिए तमाम उम्र सफ़र में, अपना लीजिए हर एक को  जो भी रुकना चाहे हजर में, आसां लगने लगे मंजिल  जिसके  होने से  कठिन डगर में, तब समझो तुम्हारी तलाश पूरी हुई । हुनर की आलोचना भी हो,  प्रतिकार हो दंभ का भी, अश्रु पूरित हो नयन जब, प्रेम हो, विकल भी, कल्पनाएं जब हकीकत सी लगने लगे, तब समझो तुम्हारी तलाश पूरी हुई ।

ईश्वर की अवधारणा

 सबसे अहम और अस्पष्ट सवाल का उत्तर अगर कुछ है तो वो है ईश्वर के बारे में, अन्यथा हमने अभी तक सभी रहस्मयी गुत्थियों को सुलझा लिया है। इस दुनिया में सबसे ऊर्जा दायक अगर कोई हैं तो वो हैं ईश्वर, अगर कोई स्थान है तो वह है 'ईश्वर का घर जिसको हमने मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि नाम दिया है। मगर ऐसा क्यूं?  ऐसा क्या है जो सब ईश्वर से इतनी शक्ति प्राप्त करते हैं? जो उन्हें इतनी ऊर्जा प्रदान करती है। ईश्वर, भगवान, खुदा कोई भी हो सकता है जिससे सभी को सतत् प्रेरणा या ऊर्जा मिलती है। लेकिन ऐसा क्यूं है कि ईश्वर में हमें इतनी दिलचस्पी है।ऐसा इसलिए है क्यूंकि ईश्वर ऊर्जा का सतत स्त्रोत है । ईश्वर के घर के बारे में जानने से पहले हमें जानना होगा ईश्वर क्या हैं? कौन हैं? कैसे हैं? जिसका हम इतना सम्मान करते हैं। लोग जो अपनी दिन भर की भागादौड़ी से थक जाते हैं उनको शांति चाहिए होती है तो वो ऐसी चीज की तलाश में रहते हैं जिससे उन्हें शांति मिले या फिर वो थोड़ा आराम करके पुनः अपनी एक अच्छी शुरुआत कर सकें। ईश्वर वह आदर्श है जो निरंतर प्रेरणा देता है और हमें उन्हें देखकर ये भावना उत्पन्न होती है कि हमें भी अब अपन

तुम्हारे चले जाने के बाद

 तुम्हारे चले जाने के बाद मेरे हिस्से आया एकांत, जो ठीक वैसा ही सुकून दायक है, जैसे तुम हो, लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं कि तुम मत आओ, तुम्हारे चले जाने के बाद मैंने चाहा तुम आओ, और मेरे कंधे से बोझ को हल्का कर दो , परंतु तुमने मुझे इतना मजबूत बनाया है कि इसकी ज़रूरत नहीं, मैं चाहती हूं तुम घनघोर बारिश में, कभी कभी भीगकर मेरे लिए आओ ! मैं चाहती हूं तुम फिर आओ,  मेरी इन शामों में जैसे पहले आया करते थे, और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी सारी बातें बताओ ! फिलहाल तुमको जैसा ठीक लगे तुम वैसे आओ, मेरे लिए तुम्हारा आना ज़रूरी है ! Pic credit- By one of the page followers

Adv

Followers

Wikipedia

Search results

Visitor No.

Translate