ईश्वर की अवधारणा
सबसे अहम और अस्पष्ट सवाल का उत्तर अगर कुछ है तो वो है ईश्वर के बारे में, अन्यथा हमने अभी तक सभी रहस्मयी गुत्थियों को सुलझा लिया है। इस दुनिया में सबसे ऊर्जा दायक अगर कोई हैं तो वो हैं ईश्वर, अगर कोई स्थान है तो वह है 'ईश्वर का घर जिसको हमने मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि नाम दिया है। मगर ऐसा क्यूं? ऐसा क्या है जो सब ईश्वर से इतनी शक्ति प्राप्त करते हैं? जो उन्हें इतनी ऊर्जा प्रदान करती है। ईश्वर, भगवान, खुदा कोई भी हो सकता है जिससे सभी को सतत् प्रेरणा या ऊर्जा मिलती है। लेकिन ऐसा क्यूं है कि ईश्वर में हमें इतनी दिलचस्पी है।ऐसा इसलिए है क्यूंकि ईश्वर ऊर्जा का सतत स्त्रोत है । ईश्वर के घर के बारे में जानने से पहले हमें जानना होगा ईश्वर क्या हैं? कौन हैं? कैसे हैं? जिसका हम इतना सम्मान करते हैं।
लोग जो अपनी दिन भर की भागादौड़ी से थक जाते हैं उनको शांति चाहिए होती है तो वो ऐसी चीज की तलाश में रहते हैं जिससे उन्हें शांति मिले या फिर वो थोड़ा आराम करके पुनः अपनी एक अच्छी शुरुआत कर सकें। ईश्वर वह आदर्श है जो निरंतर प्रेरणा देता है और हमें उन्हें देखकर ये भावना उत्पन्न होती है कि हमें भी अब अपने अपूर्ण या फिर किसी कार्य को कर लेना चाहिए। हमारे जितने भी ईश्वर रहे हैं जैसे राम कृष्णा विभिन्न पैगंबर या फिर जीजस वो सभी इंसान ही रहे हैं जो की हमारे आदर्श हैं। ईश्वर बनने के लिए हमें अपनी बहुत सी चीजों का परित्यग भी करना पड़ता है क्यूंकि अभी तक हमने ऐसे ईश्वर की कल्पना ही नही की है जो इंसान न रहा हो।
मुझे नहीं पता इस संसार का निर्माण कैसे हुआ मतलब किसने की। इस प्रश्न का उत्तर अगर हम वैज्ञानिक तरीके से देना चाहे तो दे सकते हैं, मगर वो एक ऊर्जा का स्त्रोत जो मानव द्वारा फैलाए गए अशांति को शांति प्रदान करें वह है ईश्वर ।और बात रही अगर कि हमें ईश्वर वाले स्थानों से इतनी शांति क्यूं मिलती है तो ऐसा है क्योंकि हमारे अंदर जो सभी परेशानियां प्रश्न इत्यादि होती हैं वनहा जाकर हमें ऐसा लगता है मतलब ऊर्जा मिलती है कि कोई बात नहीं जो भी होगा हम देख लेंगे ऐसा सबके साथ होता है,हम अकेले नहीं हैं, हमारे अराध्य ने भी ये सब झेला है या फिर जो हमारे ईश्वर हैं वो हमें वह इच्छित कार्य करने की सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करेगा। तो अब ये सवाल उठता है कि हमने अपने ईश्वर को पत्थर का रूप क्यूं दे दिया ?? तो जो उत्तर मुझे सबसे सटीक लगता है वो ये है कि अगर हमने ईश्वर को ये रूप न दिया होता तो शायद हम उनकी ना कर पाते उतने सकारात्मक तरीके से ।हमारे इष्ट का रूप हर परिस्थिति के अनुरूप अलग -अलग होता है ।जिससे हमें एक अलग तरीके से मिलती है कि हमें विभिन्न परिस्थितियों में कैसे रहना चाहिए और इसी वजह से हमारे ईश्वर के घर की परिकल्पना जो हमने की है वो भी अलग अलग है। हम किसी विशेष या एकल जगह को ईश्वर का घर नहीं बोल सकते हैं, जिस भी जगह से हमें शांति मिलती है, सुकून मिलता है वह है हमारे अवांछित ईश्वर का घर, तो ऐसे कई स्थान हैं जहां जाकर हम खुश होते हैं । तो वही हमारे ईश्वर का घर है।
और रही बात हमारे ईश्वर या आराध्य को भोग क्यूं लगाया जाता है तो मेरे हिसाब से इसका बहुत ही अच्छा कारण ये है कि उस प्रसाद के वितरण से जो गरीब या फिर जिस जानवर को दिया जाता है तो वो तृप्त होता है उसको खाकर तो ये अच्छी बात है और ईश्वर के नाम पर तो इस वजह से भंडारे भी किए जाते हैं , जोकि अच्छी बात है। तो ये तो अच्छी बात है इस दुनिया को सुचारू रूप से चलने के लिए कोई न कोई आदर्श होना चाहिए और वो हैं हमारे ईश्वर । ईश्वर के अस्तित्व की वजह से कभी तो लोग इतना डरते हैं कि कोई गलत काम नहीं करते क्यूंकि उनको डर लगता है कि इस गलत काम की सजा उनको मिलेगी तो ये तो अच्छी बात है।
यंहा तक कि कुछ लोग ईश्वर की कसम दिलाते हैं जो इस बात का साक्षात हमारे सवाल का उत्तर भी है कि ईश्वर विश्वास का भी एक रूप है जिसकी वजह से कसम देने से लोग उस व्यक्ति का विश्वास कर लेते हैं तो इस प्रकार से हम ईश्वर के बारे में जो कुछ भी सोच सकते थे ये थोड़ा बहुत ही है परंतु ईश्वर की कल्पना करते समय हम इतने गंभीर सोच में जो जाते हैं कि हम निरंतर सोचते रहना चाहते हैं और एक आनंदमय, अध्यात्म सोच में गुम हो जाते हैं जोकि काफी सुकून दायक है।
तो निष्कर्ष ये है कि ईश्वर का कोई एक विशेष घर नही है, कोई भी जगह ईश्वर का घर हो सकती है बशर्ते उस स्थान पर शांति होनी चाहिए इसी वजह से तो ऐसे स्थान के पास नदी पेड़ पौधे ज्यादा होते हैं जो की शांति का कारण है। ईश्वर का घर एक नही हैं क्यूंकि ऐसा होने से कोई ईश्वर के ज्यादा करीब हो जाएगा तो कोई दूर जोकि गलत बात है। सबके आराध्य उनको समान ऊर्जा प्रदान करते हैं, सभी खुद में ईश्वर के रूप हैं तो हर जगह ईश्वर ही ईश्वर है और मैंने किसी किताब या पुराण में भी ये बात पढ़ी है कि ईश्वर सब जगह है।
~शिखा
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