हारना
हम हार जाते हैं हर बार, अपनों से बार बार, जीतते हुए भी कह नहीं पाते, की हारना कितना सुखद है उनसे । अत्यधिक प्रेम के डर से, नितांत एकांत में हारना प्रेम से भी भयावह लगता है। हारना है हमें अंतहीन संवेदनाओं से, अनगिनत विचारों से, आह्लादित कर देने वाली सोच से, जैसा कुछ होने वाला ही नहीं।