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Showing posts from 2021

Sometimes

Sometimes We afraid from Our beloved ones, And suddenly Strangers  become Our best friends. Sometimes love is meaningless, Although it is there Yet absent. Sometimes Darkness attract, Though Light is beautiful, Still distract. Sometimes We forget to loose from our deepest desire, and doesn't realize even after someone admires. Sometimes Our heart melts and emotions flow, Our mind keeps going And Eyes glow. Sometimes  We defeated by  the Dearest ones, Yet it is uncertain Who won? Sometimes No one care Whatever you were Be always there.   Sometimes Journey matters Not the Goal, Life is to the fullest  when lived by the purest soul. Sometimes  I write, And doesn't realize Why do I write !!

सफलता

पिछले परीक्षा के परिणाम आ चुके हैं, और कई अभ्यर्थियों को सफल  या  उत्तीर्ण घोषित किया गया है। मुझे लगता है, सफल और उत्तीर्ण  होना दो अलग-अलग  चीजे  है। कई बड़े  विद्वानों ने इस पर अपनी राय दी है, जैसे सफल होना आप के प्रयत्नों का द्योतक है, और भी कई  सुन्दर से स्लोगन,  जैसे क़ि  सफलता के लिए यह जरूरी है, वह जरूरी है, फलाना, ढिमाका आदि।  फिलहाल मेरे लिए सफलता का पर्याय है कि आप अपनी उपलब्धियों से कितना खुश है। अक्सर कम  प्रतिशत वाले विद्यार्थी ज्यादा खुश रहते हैं , अधिक अंंक अर्जित करने वाले विद्यार्थियों से। समाज ने तो लोगों को सफलता के स्वाद में बिगड़ते  भी देखा है । सफलता का  रंग उन पर इस तरह चढ़ा है कि उतरने का नाम ही नहीं लेता, मानो अमुक परीक्षा ना हो गई जीवन सफलता की कुंजी हो गई ।  सफलता  ने उनके जीवन में एक अलग ही अकड़ पैदा  कर दी है |   पर सत्य ये भी है कि सफलता एक  दिन में नहीं मिलती यह अनवरत बिना रुके हुए कई वर्षों की मेहनत का परिणाम होती है । सफलता के लिए जो जरूरी है, वह है कठिन मेहनत के साथ निरंतरता। यदि निरंतरता नहीं रहेगी तो नदी का जमा पानी भी बदबू देने लगता है ।  और अंत म

कौन ?

मैं गिर गया तो, फिर संभालेगा कौन ? तुझे मुश्किलों से फिर निकालेगा कौन ! गर मंजर हसीं नहीं तो क्या हुआ, दहसत में मासूमों को फिर पालेगा कौन ? खिदमत करते हो जिनकी तुम दर ब दर, खुदा से उनको फिर बचा लेगा कौन ? आंसू संगदिल नहीं हो सके मेरे, बुरी नजरों से उन्हें छिपाएगा कौन ! जीने का बस एक यही रस्ता आख़री तो नहीं,  कई और होंगे, उन रस्तों को तुमसे रूबरू कराएगा कौन ! सभी रहगीर हैं, छोड़ चले जाएंगे इक न इक दिन, उम्र भर फिर तेरा साथ निभाएगा कौन !

वो जो गीत न बन पाए...

१ पतझड़ भी बीत गई, बहार भी न आए सर्द है जो मौसम, करार भी न आए ! बनना था जिन्हें मीत मेरा, मेरी कविता का वो, गीत भी न बन पाए। २ सहमा है सब कुछ,  रूह से न सही, इश्क का व्यापार अच्छा है। ३ ये तो उसका रहमोकरम है, जब जी चाहा याद किया, जब जी चाहा भूल गए ! ४ कल से और शाम हसीं होगी, कल से वो जुदा होंगे धीरे धीरे। ५ यूं ही चलो, किसी सफर में चला जाए  बेवजह मंजिल को क्यों, याद किया जाए।

God (I)

Who had imagined the fact that one day some human beings will be sitting to decide the matter of God? Perhaps no one had imagined the attempt made by human beings in the 21 st century that invigorated a question again in our minds, Are you there God? This question finds as much relevance in the modern era as much was relevant thousands of years ago. The prince of Kapilvastu Siddharth rejected the throne and luxurious life and renunciate the materialistic world in search of God.  If we look at history, it is full of many great souls who dedicated their lives to God and reached there. You may have heard the name of Maharishi Dadheechi who had donated his bones for the sake of God and the welfare of mankind at large, in this series of austerity, renunciation, determination, dedication, and devotion many other ancient names can also be added such as Charak, Bharadwaj, Kapil, Sushrut, Agastya, Vashishth, Vishvamitra, Atri, Vamdev, Shaunak, Kanva,  etc. of Vedic religion. Further, if we lo

गांव

गांव के चौबारे में कुछ बूढ़े, चर्चा कर रहे थे के फला भी गया !  गया से तात्पर्य, ऊपर जाने से था। बेचारे से मिल भी न पाए थे उसके बहू बेटी भी, जो दूर रहते थे, किसी शहर में। पर उसके अपने बेटे दूर शहर में भी रहकर, आ ही जाते हैं जरूर हर तीसरे साल कभी कभार । यह कह कर सभी चले गए। अपने अपने एकांतवास में। गांवों को अब हम ने ऐसा ही बना दिया है, वहां अब कोई भी नहीं रहता, सिवाय इन गिनी चुनी बूढ़ी आत्माओं के ।

किनारे

हम मिलेंगे दूर उस नदी  के किनारे, जो बरसों पहले सूख गई थी, जीवन दिया था, जिसे तुम्हारे हाथों ने, अपने फावड़े से।  बरसों पहले वहां कोई आता भी नहीं था, बिना पानी के कौन पूछता है,  नदियों को, इक बरसात के अलावा । बस तुमने रचा था, अपने अंदर के जज्बे से,  सूखी पड़ी नदी को, वापिस बदला था  लहरों में । अब जबकि नदी की पुरानी जवानी लौट आई है, और लौट आए हैं, सभी परदेश गए लोग, केवल तुम ही छोड़ गई, अपने चंदर को बेवजह, बिना सहारे।

प्रेम गीत

मैंने लिखे थे कुछ प्रेम गीत, जो जला दिए वक्त ने, वक्त से पहले। उन गीतों में जिक्र था बस दो लोगों का, समाज और हम, हम जो की एक किताब के होते हुए भी, अलग मानसिकता के पन्ने थे, इसलिए जला दिए मैंने वो पत्र, किसी का घर राख होने से पहले। उन गीतों में मधुरता भी थी, और था प्रेम का संपूर्ण सौंदर्य, जिसको सुन कर, तुम कहती, कि क्यों न मिल पाए हम,                 इससे पहले ! प्रेम गीतों की यही नियति होती है शायद, वो किसी और के लिए लिखे जाते हैं, किसी और को सुनाने के लिए, जब कोई और प्रेम में होता है, उन्हें सुनाने से पहले ।

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