कविता

मैं वो कविता जो कवि हर रात को लिखने के लिए सोचता है, मगर भूल भूल गया 
और उस कविता लेखन का आंतरिक आनंद जो कभी-कभी मिलता है,
मैं वो राही जिसे रास्ते तो सारे पता है मगर राह -ए -मुश्किल चुनता है,
मैं वो मां का आंचल जो एक अनाथ को कभी मिला ही नहीं,
मैं वो हक़ जिसे लोगों ने सिद्दत से चाहा पर मिला नहीं,
मैं वो मन की आवाज जो लोग कह नहीं पाए ये जानते हुए भी कि इसके बाद सब ठीक हो जायेगा,
मैं वो बगावत जिसके छिड़ने पे कुछ शेष न रहे....






To be continued
~शिखा

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